संस्कार अउ रीति-रिवाज ह एक डहर अंचल ल अलग चिन्हारी देवाथे त दूसर कोति कतको झन के जीवका चलाय बर बुता काम घलोक देथे। सबो राज के अपन अलग-अलग रिवाज ह तइहा समे ले चले आवाथाबे। हमर छत्तीसगढ़ म सियान मन जोन चलागन चलाय हे ओमा सबो पंचन बर अलग-अलग बुता बनाए हे। या यहू कि सकथन के पंचन के वर्ण व्यवस्था बुता काम के हिसाब ले अलग-अलग बने हाबे। इही पाय के छत्तीसगढ़ म जाति भेद के दिंयार नइ सचरे पइस। कोनो भी सगा के होय ओमन अपन काम उरकाय म दूसर जात सगा मन के हियाव करबेच करथे। हमर संस्कारे अइसन हे कि उंकर बिगर रिवाज ह फत नइ परय। जइसे के जनम संस्कार के बात करन तब छेवारी घर म मेहरइन, धोबनिन, नाउ मन के नेंग काटे बिगर घर के कुछू टाहल नइ करत रिहिन। मेहरइन छ_ी बरही के नाहकत ले लइका, लइका के महतारी ल सेके अउ तेलफूल चूपरे बर लइकोर घर सरलग आवे। धोबनिन के बुता छ_ी के दिन रथे ओ दिन धोबनिन ह लइकोर घर के ओन्हा कपड़ा ल धोथे। चुरेना बोरे के सबो समान के जोखा घरे वाला मन करे रिथे फेर चुरेना काचे बर धोबनिन ल बलायेच बर परथे।
छ_ी के दिन नाऊ हर डउका लोमन मन के सावर बनाथे अउ नान्हे लइका के मुड़ मुड़थे। कतको घर झालर राखे रिथे तेनो मन झालर उतारे के बखत नाऊ बलाबे करथे। जनम संस्कार के अइसन रिवाज अब देखे ल नइ मिले। समे के साथ उहू हर बदलत हाबे। घरो वाला मन घलोक नेंगहा मन के जोखा नइ करे अउ नेंगहा पंचन मन तो अब गांव-गांव के बंधे काम ल छोड़ के अंते-अंते बुता करे बर लग गे हावय। जेन मन करत हे तेन मन गांव म लगे नइ हे, अउ कोनो काम परथे त ओमन ल ऊंकर दुकान ले बला के काम कराय बर परथे। काम ल तो उही नेंगहा पंचन मन करथे फेर अब उहू मन नेंग के बुता करे म कोन जनी का पायके ते उमन ल करन नी भाए। इही रकम ले बिहाव संस्कार म तको राउत, कोष्टा, नाऊ, कड़रा अउ कुंभरा उक गजब झीन पंचन मन गांव-गांव म अपन पुरखौती काम करत राहंय त आगू गांव के मन ल
बर बिहाव के जोखा करे म सोहलियत तको होवय। जइसे के मड़वा के बांस ह कड़रा घर ले लेवेय, बिहतरा नेंग के पर्रा झापी तको कड़रिन मन करा आगू ले आरो करके बनवा लेवय। कपड़ा ओनहा बर कोष्टा घर आगू ले आरो करके बनवा लेवे।
लोहार सोनार मन के काम घलोक गांवे म हो जवे। करसा-कलउरी कुम्हार घर ले आवय। अइसन सबो पंचन घर ले समान के जोखा करे म बर-बिहाव के आनंदे अलगे राहय। अब अइसन कहां पाबे। मड़वा के बांस ह लकड़ी टाल ले आथे। पर्रा झापी बिजना ल नेवता देके बनवाय के दिने नंदा गे, रूपिया धरके जा अउ तुरते बजार ले बिसा के ले आन। अइसने मरन संस्कार तको नेंगहा पंचन के नेंग ल बजरहा जिनिस ले काम निपटत हाबे। नेंगहच पंचन मन के बात नहीं अब तो धीरे-धीरे अब कारिगरी करइया मन घलोक अपन पुरखौती बुता न छोड़त हाबय। वर्ण व्यवस्था के हिसाब ले देखन त जाति ह छोटे अउ बड़े अइसन जाति बटवारा नइ हे काम बुता के हिसाब ले सबो के अपन-अपन हरहिंछा अलगे-अलग बुता हे ताकी सबो ल बरोबर रोजी मजूरी मिलत राहे। अब अवइया पीढ़ी ह काबर ते अपने काम ल हीनत जावथे लोहरी
सोनारी बढ़ई जइसन कारिगरी करइया पंचन मन अब दुकान जमा के बजरहा होगे हाबे इही पाके हमर अंचल के गजब अकन नेंग जोग अउ रिवाज ह बजरहा जिनिस ले सिरजत हे। कतको ह नंदा घलो गे। अब तो अइसे लागथे के धीरे-धीरे नेंग जोग अउ रिवाज ह तइहा समे के सियान मनके चलाय चलागन ले नहीं बल्कि बजार के हिसाब ले चलही।
जयंत साहू
ग्राम – डूण्डा पो. सेजबाहर रायपुर